यादों के झरोखे से Part 2 S Sinha द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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यादों के झरोखे से Part 2

यादों के झरोखे से Part 2


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मेरे जीवनसाथी की डायरी के कुछ पन्ने - मैट्रिक , प्री यूनिवर्सिटी और इंजीनियरिंग में एडमिशन और चीनी आक्रमण


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7 मई 1961


करीब दो महीने कलकत्ता में बिताने के बाद आज मैं जमशेदपुर लौट रहा था . मेरा बोर्ड का रिजल्ट किसी भी दिन आ सकता है . बड़े बाबा हावड़ा स्टेशन पर छोड़ने आये , बोले “ टाटा स्टेशन पर कोई गड़बड़ तो नहीं करोगे . “


“ नहीं बड़े बाबा , वहां तो सब जाना पहचाना है . वहां से सीधे बस से बिष्टुपुर घर चले जाएंगे . “


मैंने कलकत्ता में करीब दो महीने मौज मस्ती की . वहाँ प्लेनेटोरियम , जू , बेलूर मठ , बोटैनिकल गार्डन आदि दर्शनीय स्थान तो देखे ही इस दौरान काफी सिनेमा भी देखा . वहां सिनेमा हॉल्स भी बहुत ज्यादा हैं .


मई 1961 ( तिथि स्पष्ट नहीं )


आज पटना से प्रकाशित इंडियन नेशन पेपर में मेरा रिजल्ट निकला है .मुझे फर्स्ट डिवीजन मिला है , घर में अम्मा बाबा , भाई बहन सब खुश हैं . आज ढेर सारा प्रसाद बाबा चढ़ाएंगे और खूब मिठाई खाने को मिलेगी . दो दिन बाद स्कूल मार्कशीट लेने जाना है .


शाम को बाबा से आगे की पढ़ाई के बारे में बात हुई . आगे पढ़ने के लिए जमशेदपुर में अभी कोई भी कॉलेज रेगुलर नहीं है . एक कॉलेज अभी बन रहा है जिसका इवनिंग क्लास मेरे ही स्कूल में होता है . भैया पटना साइंस कॉलेज में पढ़े थे , वह बिहार ही नहीं देश के अच्छे कॉलेजों में माना जाता है . बाबा , भैया और मेरा सभी का मन है वहीँ पढ़ने का पर उसके लिए काफी अच्छे मार्क्स चाहिए .मेरे भी सारे पेपर काफी अच्छे हुए थे मैं भी अच्छे नंबर लाने की उम्मीद में हूँ . अब यह तो मार्क्स मिलने पर ही पता चलेगा .


22 मई 1961


आज सुबह सुबह घर से दही चीनी खिला कर बाबा ने स्कूल भेजा . मार्क्स अच्छे थे करीब 73 % पर मुझे और ज्यादा आने की उम्मीद थी कम से कम 75 % . भाई का 73 . 5 % था तो मुश्किल से सेकंड लिस्ट में साइंस कॉलेज से कॉल आया था . मैं स्कूल ऑफिस से अपना मार्कशीट ले कर जैसे ही बाहर निकला था कि मेरे संस्कृत सर ने मार्कशीट मेरे हाथ से ले लिया और वे बोले “ हे भगवान् ! ये क्या , बोर्ड के मार्क्स तुम्हारे इतने अच्छे और असेसमेंट मार्क्स इतने कम . 20 % मार्क्स स्कूल के हाथ में होता है जिसमें तुम्हें 20 में सिर्फ 13 मिले हैं . “


सर मुझे ले कर प्रिंसिपल के पास गए और बोले “ इस लड़के के साथ इन्जस्टिस हुआ है . देखिये स्कूल असेसमेंट में संस्कृत छोड़ सभी विषयों में सिर्फ 12 या 13 ही इसे मिले हैं . “


प्रिंसिपल बोले “ मैं क्या करता , यह लड़का तो आठ महीने पहले पटना से ट्रांसफर हो कर आया था . वहां से उसका असेसमेंट तो काफी अच्छा था करीब 18 था . यहाँ आप लोगों ने कम दिए तो प्रिंसिपल क्या करे . “


अब बात मेरी समझ में आ रही थी . पुराने स्कूल में मैं अपने क्लास में हमेशा अव्वल आता था , वहां के सभी टीचर्स मेरी पढ़ाई से खुश थे हालांकि मैंने आजतक ट्यूशन नहीं पढ़ा था . यहाँ आने पर दोस्तों ने कहा था कम से कम साइंस और मैथ्स में ट्यूशन लेने की पर मुझे उसकी रत्ती पर जरूरत नहीं थी . उसी का नतीजा सामने है .


संस्कृत सर ने कहा मेरा एडमिशन साइंस कॉलेज में हो सकता है पर इस जिले में काफी ज्यादा लड़कों को तुम से अधिक नंबर आये होंगे तो शायद नेशनल स्कॉलरशिप से चूक जाओ . टोटल में करीब 10 - 15 नंबर ज्यादा आता तब करीब करीब निश्चित था .


10 जुलाई 1961


जिस बात का मुझे डर था आज वही हुआ . पटना साइंस कॉलेज में मेरा एडमिशन न हुआ पर पटना यूनिवर्सिटी के दूसरे अच्छे कॉलेज में प्री साइंस में मुझे दाखिला मिला . कुछ महीने बाद मुझे पता चला कि नेशनल स्कालरशिप भी नहीं मिली है पर बिहार राज्य की स्कालरशिप आसानी से मिल गयी जिसकी रकम करीब आधी थी . उस समय मुझे पटना छोड़ कर जमशेदपुर जाने का अफ़सोस हुआ . वहां मैं साढ़े पांच साल से पढता आ रहा था और हर परीक्षा में टॉप करता था . प्रिंसिपल ने कहा था “ कुछ ही महीने बाद तुम्हारा बोर्ड होगा और नए स्कूल के टीचर तुम्हें नहीं जानते हैं , तुम्हारे 20 % असेसमेंट मार्क्स पर प्रतिकूल असर पड़ेगा . “


पर मैंने जमशेदपुर का बड़ा नाम सुना था , बहुत साफ सुथरा शहर है और वहां बड़े बड़े कारखाने हैं . इसी लालच में मैं बाबा के ट्रांसफर के समय टाटा चला गया .


9 जुलाई 1962


आज मेरे और मेरे परिवार सभी के लिए ख़ुशी का दिन है . मुझे पटना यूनिवर्सिटी के बिहार कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग में एडमिशन मिला है . फाइव ईयर मैकेनिकल इंजीनियरिंग का आज पहला दिन था . मेरे भैया भी इसी कॉलेज में मैकेनिकल डिपार्टमेंट में थर्ड ईयर में हैं जिस के चलते मुझे बहुत मदद मिलेगी . उनकी किताबें और नोट्स मेरे काम आएँगे .


10 जुलाई 1962


इस दिन हमें बताया गया कि NCC या होमगार्ड दोनों में एक ज्वाइन करना कम्पल्सरी है , सभी 120 लड़कों को लाइन में खड़ा कर सेना का एक कैप्टन असंगी चुनाव कर रहा था . उसकी नजर में जो बेहतर थे उन्हें इंजिनीयर्स NCC के लिए उसने चुना और बाकी को होम गार्ड में जाना पड़ा . मैंने भी इंजिनीयर्स NCC ज्वाइन किया . कैप्टन ने कहा कि वह बंगलोर का रहने वाला है और हमें NCC कैंप के लिए बंगलोर ले जायेगा . सप्ताह में दो दिन क्लास खत्म होने के बाद शाम को पैरेड करना पड़ेगा और पैरेड के बात समोसे मिठाई मिलेंगे . NCC वाले सभी लड़के बहुत खुश हुए .


6 अक्टूबर 1962


कैप्टन असंगी ने अपना वादा पूरा किया है . आज मुझे दो सप्ताह के NCC कैंप के लिए बंगलोर निकलना है . पटना से कलकत्ता और मद्रास होते हुए बंगलोर जाना है . मैं बहुत खुश हूँ . कलकत्ता में 10 घंटे रुकना है , मैंने फिर बड़े बाबा को स्टेशन आने के लिए कहा है .


7 अक्टूबर 1962


सुबह सुबह हावड़ा पहुंचे , इस बार बड़े बाबा प्लेटफार्म पर मिले . अपने दोस्तों को बता कर मैं उनके साथ गया पर कुछ घंटों के लिए . दोपहर करीब दो बजे मद्रास मेल से मद्रास जाना था फिर वहां से बंगलोर . पर मुझे लौटने में कुछ देर हो गयी ट्रेन लगभग छूटने वाली थी . हमारा डब्बा रिजर्व था दौड़ कर किसी तरह ट्रेन पकड़ने में सफल हुआ .


9 अक्टूबर 1962


सुबह बंगलोर कैंट पहुंचे . कैप्टन असंगी मिलिट्री ट्रक ले कर हमारा वेट कर रहा था . हम अपना सामान ले कर ट्रक में सवार हुए और कैप्टेन अपनी जीप में . आधा घंटे में कैंप पहुँचे , एक बैरेक था . वहां एक एक कमरे में चार कैडेट्स को रहना था . वहां दरी , कंबल , थाली और मग आदि इशू करा कर अपना बिस्तर ठीक किया .


थोड़ी देर आराम और नाश्ते के बाद एक जूनियर नॉन कमीशंड अफसर ने हम सभी को पैरेड ग्राउंड में बुला कर लाइन में खड़ा कर रोज की दिनचर्या के बारे में बताया . सुबह और शाम दो बार परेड और शाम के बाद कैंप से बाहर जाने की अनुमति नहीं थी .


19 अक्टूबर 1962


कैप्टन असंगी आये , हमलोगों को परेड ग्राउंड में विश्राम की मुद्रा में एड्रेस कर रहे थे . उम्मीद है आप लोगों ने कैंप एन्जॉय किया है . आपने पॉइंट 302 से फायरिंग किया , आर्मी नौका चलाना आदि सीखा . यह ट्रेनिंग सरकार यही सोच कर देती है ताकि आप में से कम से कम कुछ तो आगे चल कर भारतीय सेना में अवश्य जायेंगे और यह ट्रेनिंग मददगार होगी . इमरजेंसी की स्थिति में बाकी लोग भी मुश्किल हालात का सामने करने में देश के काम आएंगे . 23 की रात कैंप फायर होगा और उस दिन हम स्पेशल खाने का इंतजाम करने जा रहे हैं जिसे हम बड़ा खाना कहते हैं .


बंगलोर आ कर और इतने दिनों में एक भी सिनेमा न देखा , सिनेमा देखने को दिल मचल रहा था . एक दोस्त और रूममेट को तैयार किया . अपना तकिया , बैग आदि बेड पर रख ऊपर से कंबल से ढक दिया ताकि देखने में लगे हम सो रहे हैं . गेट पर एक संतरी रहता है वह हम में से ही कोई कैडेट होता है . इत्तफाक वे उस दिन संतरी हमारा दोस्त ही था इसलिए मैनेज हो गया . रात को एक अच्छे हॉल में “ प्रेम पत्र “ मूवी देख कर लौटे .


20 अक्टूबर 1962


हम लंच के बाद अपने बैरेक में आराम कर रहे थे . कुछ देर में शाम की चाय मिलती . तभी खबर मिली कैप्टेन असंगी थोड़ी देर में परेड ग्राउंड में एड्रेस करेंगे .हम सभी कैडट्स ग्राउंड में थे . कैप्टन ने कहा “ बहुत दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि चाइनीज आर्मी ने उत्तर और पूर्वोत्तर दोनों फ्रंट पर अचानक हमला किया है और वे हमारी सीमा में घुस आये हैं . मुझे तत्काल असम में तेजपुर रिपोर्ट करने का आदेश मिला है . सो दोस्तों , आप बाकी के तीन दिन अपना कैंपिंग पूरा करें . उम्मीद है आगे भी आपसे भेंट होगी . जय हिन्द . “


कैप्टेन हमें रुला कर चला गया .


23 अक्टूबर 1962


आज रात में कैंप फायर है पर किसी में भी उत्साह नहीं रहा था . बस मामूली तरीके से कैंप फायर की रस्म भर निभायी गयी .

24 अक्टूबर 1962


हम सभी ट्रेन में बैठे हैं . सब कैडेट्स ने कैप्टन की सलामती के लिए प्रार्थना की . हम सभी ट्रेन में बैठे हैं . मद्रास और कलकत्ता होते हुए पटना लौटना है .